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Abhinav Saxena

a body of clay, a mind full of play, a moment's life - that is me

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20 years ago, I was wrapping up my last on-campus semester. Those three and a half years changed my life. The last days were bittersweet for everyone. I knew life would get easier and better, but I wouldn’t be surrounded by my friends like I was then. I wrote these lines in those moments!


आज जब लिखने बैठा हूँ
कहानी अपने इस दूसरे घर की,
केवल याद आते हो तुम
मेरी कमाई जीवन की

सोचता हूँ इन कमरों की कतारों को
क्यों मैं अपना कहता था,
सोचता हूँ इन चार दीवारियों के बीच
क्यों मैं निर्भय रहता था

हर प्रश्न के उत्तर में
मैं केवल तुमको पाता हूँ,
आँसू की बूंदो के बीच
प्यारी यादें संजोता जाता हूँ

अपने सपनो को टूटते देखना
बहुत ही मुश्किल होता था,
पर तेरी उस मुस्कान से
मैं सारे आँसू खोता था

तेरी ही बातों से सीखा
जीवन को समर कहते हैं,
हार-जीत का मोल नहीं
केवल योद्धा अमर रहते हैं

आज अपने आप को
मैं एक सैनिक पाता हूँ,
आँसू की बूंदो के बीच
प्यारी यादें संजोता जाता हूँ

इस नीले नभ की नीचे
सुन्दर सपने पलते हैं,
जिंदगी अभी खत्म नहीं
ढ़ेरों अपने मिलते हैं

पर तुम बिन मेरे मित्र
सब कुछ बिलकुल सूना है,
तुम से ही मेरी ​सारी खुशी
वरना हर दुःख मेरा दुगना है

इस छोटे से संसार से
अब मैं विदा पाता हूँ,
आँसू की बूंदो के बीच
प्यारी यादें संजोता जाता हूँ

-अभिनव
२९ नवंबर २००४